] गांव भूरटवाला के किसान गणेश चांवरिया को राजनीति, समाजसेवा से मिली शोहरत तो शहद ने दिलाई दौलत

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गांव भूरटवाला के किसान गणेश चांवरिया को राजनीति, समाजसेवा से मिली शोहरत तो शहद ने दिलाई दौलत

 


ऐलनाबाद पंचायत समिति के वाईस चेयरमैन गणेश चांवरिया मधुमक्खी पालन कर कमा रहा 14 लाख सालाना
गांव भूरटवाला के  किसान गणेश चांवरिया को राजनीति, समाजसेवा से मिली शोहरत तो शहद ने दिलाई दौलत
चोपटा प्लस न्यूज
किसान दिन रात मेहनत करके परंपरागत खेती से पैदावार तो लेता है लेकिन वर्तमान में महंगी खाद, बीज, कीटनाशक दवाईयों व मशीनीकरण के 
कारण कृषि में बचत कम होने लगी है। उपर से कभी औलावृष्टि, प्राकृतिक आपदा, सूखा फसली बिमारियां आदि से कई बार तो फसल उत्पादन नगण्य हो 
जाता है। फसल उत्पादन में लागत ज्यादा व मंदे भाव के कारण परंपरागत खेती से आमदनी कम हो जाती है और खर्चा ज्यादा होने से किसान की आर्थिक 
स्थिति डावांडोल हो जाती है। ऐसे में घर के बच्चे भी खेती के साथ अतिरिक्त कमाई का जरीया खोजने लगते हैं। घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत रखने के 
लिए गांव भूरटवाला (सिरसा) के किसान गणेश चांवरिया (अब वाईस चेयरमैन पंचायत समिति ऐलनाबाद)ने परंपरागत खेती के साथ मधु मक्खी पालन कर 
कमाई का जरिया खोजा। उसने अपने घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए चार वर्ष पहले एक अखबार में पढ़कर 50 बक्सों से मधुमक्खी 
पालन व्यवसाय शुरू किया। जिससे कृषि के साथ मधु मक्खी के शहद से हर वर्ष करीब 14 लाख रूपये की अतिरिक्त आमदन शुरू हो गई। शहद की कीमत 70 से 120 रूपये प्रति किलोग्राम है। इसके अलावा मधुमक्खी के छतों से बना मोम बेचकर भी कमाई होने लगी। लीक से हटकर कुछ करने के जज्बे ने 
राजनीति व समाजसेवा के साथ साथ गणेश चावरिया को हरियाणा के साथ- साथ निकटवर्ती राजस्थान के आस पास के गांवों में अलग पहचान भी दिलवाई। 

आधुनिक तकनीक, राजनीति व समाजसेवा के जज्बे के साथ कम उम्र में ही कि सानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया।  
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अखबार में मधु मक्खी पालन व्यवसाय के बारे में पढ़कर शुरू किया व्यवसाय
 गणेश चांवरिया ने बताया कि वह अब एमए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहा है तथा ऐलनाबाद पंचायत समिति में वाईस चेयरमैन के पद पर कार्यरत है।  मंहगाई के जमाने में परंपरागत खेती लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है। ऐसे में उसने सोचा कि कोई ऐसा व्यवसाय किया जाए जिससे पढ़ाई का खर्चा 
भी निकल जाए व घर वालों को की भी मदद की जा सके। चार साल पहले उसने अखबार में मधु मक्खी पालन व्यवसाय के बारे में एक लेख पढा। इसके 
बाद उसने इस व्यवसाय के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की।  उसने बताया कि उसने 50 मधु मक्खी के बक्सों से शहद का व्यवसाय शुरू किया अब उसके 
पास 500 बक्से हैं जिनमें हर बक्से में एक रानी मक्खी व अन्य मक्खियां होती है। उसने बताया कि एक डिब्बे में करीब 5 से 10 किलोग्राम तक शहद प्राप्त 
किया जा सकता है। शहद का भाव बाजार में 70 से 120 प्रति किलोग्राम रहता है। सर्दी के मौसम में सरसों की फसल होने पर तो शहद मात्र एक सप्ताह में 
पककर तैयार हो जाता है। जिससे कमाई ज्यादा होती है। गर्मी के मौसम में शहद को पकने में 3 से 4 महीने लग जाते हैं। इस प्रकार पूरे वर्ष में करीब 13 से 14 लाख रूपये तक की कमाई की जा सकती है। जिसमें से करीब 6 लाख रूपये बचत हो जाती है। इसके अलावा छतों से निकलने वाला मोम, बक्से, 
मक्खियां आदि भी बेची जाती है। 
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्रहर मौसम में रहती है शहद की मांग
गणेश चांवरिया ने बताया कि शहद की मांग हर समय रहती है। शहद कई प्रकार की बिमारियां को ठीक करता है। आयुर्वेदिक कंपनीयों के डीलर अपने आप 
घर से आकर शहद को ले जाते हैं। जिससे शहद बेचने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता। इस प्रकार बदलते वातावरण एवं बढ़ती जनसंख्या और बेरोजगारी को 
देखते हुए मधुमक्खी पालन व्यवसाय ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का अच्छा विकल्प बन रहा है। 

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