ग्वार फसल में जीवाणु अंगमारी (फंगस रोग) ज्यादा नुकसानदायक: डॉ. बी.डी. यादव
सिरसा चोपटा कृषि समाचार। राजस्थान की सीमा से सटे हरियाणा के सिरसा जिले में पिछले कुछ
दिनों से हो रही लगातार बारिश और बढ़ी हुई नमी के कारण ग्वार की फसल में बीमारियों
का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। किसानों की फसल पर इस बार सबसे अधिक असर जीवाणु अंगमारी (Fungal
disease) और तने के ऊपरी हिस्से के कालेपन (Charcoal disease)
का देखा जा रहा है। इसके अलावा हरा तेला और सफेद मक्खी का आक्रमण भी फसल की
पैदावार को प्रभावित कर रहा है।
इस समस्या को देखते हुए कृषि विभाग ओढ़ा (सिरसा) और हिन्दुस्तान गम एंड कैमिकल्स भिवानी के ग्वार विशेषज्ञ डॉ. बी.डी. यादव के सहयोग से गांव घुकांवाली में एक स्वास्थ्य प्रशिक्षण शिविर (Farmers Training Camp) आयोजित किया गया। इस मौके पर एटीएम ओढ़ा डॉ. पवन यादव ने किसानों को सरकारी योजनाओं और प्राकृतिक खेती की महत्ता के बारे में बताया।
ग्वार
फसल में बढ़ते रोगों का खतरा
ग्वार फसल इस बार लगातार बारिश और नमी के कारण गंभीर बीमारियों से प्रभावित हो रही है।
- पत्तों का किनारे से पीला होना और बाद में काला पड़ना
- तनों के ऊपरी हिस्से का सूखना और काला हो जाना
- पौधों का धीरे-धीरे सूख जाना
ये सब जीवाणु अंगमारी (Bacterial Blight) और चारकोल रोग
के प्रमुख लक्षण हैं।
विशेषज्ञों
की राय
ग्वार विशेषज्ञ डॉ. बी.डी. यादव के अनुसार –
"जिन किसानों ने सही समय पर दवाई का छिड़काव नहीं किया, उनकी फसलें इस रोग से
ज्यादा प्रभावित हो रही हैं। सही समय पर रोकथाम करने से फसल का नुकसान कम किया जा
सकता है।"
किसान
जागरूकता की कमी
प्रशिक्षण शिविर में किसानों ने माना कि
ज्यादातर लोग तब दवाई का छिड़काव करते हैं जब फसल का 25–30% हिस्सा
रोग से प्रभावित हो चुका होता है। उस समय तक पैदावार का काफी नुकसान हो जाता है।
किसानों को अभी तक ग्वार बीमारियों के लक्षणों और शुरुआती रोकथाम की सही जानकारी नहीं
है। इसलिए विशेषज्ञों ने किसानों को सलाह दी कि –
- बिना कृषि वैज्ञानिक या कृषि अधिकारी की सलाह के कोई दवाई
न खरीदें।
- दवा खरीदते समय पक्का बिल और बैच नंबर जरूर लें।
- बोतल की समाप्ति तिथि देखकर ही दवाई का इस्तेमाल करें।
ग्वार
फसल में जीवाणु अंगमारी रोग की पहचान
ग्वार विशेषज्ञ डॉ. यादव ने बताया कि इस बीमारी की शुरुआत पत्तों के किनारे
पीले होने से होती है। बाद में ये पत्ते धीरे-धीरे काले पड़कर सूखने लगते
हैं। यह रोग तेजी से फैलकर पूरी फसल की
पैदावार को 40–50% तक
घटा सकता है।
बीमारी
की रोकथाम कैसे करें?
डॉ.
बी.डी. यादव की सिफारिशें
- पहला स्प्रे:
बिजाई के 40–45 दिन
बाद करें।
- दूसरा स्प्रे:
पहले स्प्रे के 12–15 दिन
बाद करें।
- दवा मिश्रण:
- 30 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइक्लिन (Streptocycline)
- 400 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (Copper Oxychloride)
- 200 लीटर
पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
यदि हरा तेला या सफेद
मक्खी का प्रकोप भी हो तो उसी अवस्था में कीटनाशक दवाई का छिड़काव
करें।
कृषि
विभाग की सलाह
डॉ. पवन यादव (एटीएम ओढ़ा) ने किसानों को कृषि विभाग द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की
जानकारी दी। उन्होंने किसानों को
प्राकृतिक खेती (Natural Farming)
अपनाने पर जोर दिया। साथ ही कहा कि –
"किसान दवाई खरीदते समय सतर्क रहें। नकली या एक्सपायर दवाइयां न
केवल फसल को नुकसान पहुंचाती हैं बल्कि मिट्टी की उर्वरकता भी घटाती हैं।"
किसानों
की सहभागिता
इस प्रशिक्षण शिविर में करीब 86 किसान
शामिल हुए। सभी को मास्क वितरित किए गए। कार्यक्रम में
हरभजन सिंह, अभय
सिंह, रजनीश सिंधू,
अमीचंद, नरेश, स्वराज, गुरुदेव
सिंह, मनजीत, मेहर सिंह और निहाल सिंह जैसे किसान उपस्थित
रहे।
ग्वार
फसल और भविष्य की रणनीति
हरियाणा और राजस्थान में ग्वार की खेती
किसानों के लिए आय का बड़ा साधन है। लेकिन बदलते मौसम, अधिक नमी और समय पर रोकथाम उपाय न करने
से फसल का उत्पादन घट रहा है।
किसानों
के लिए सुझाव:
- मौसम का पूर्वानुमान देखकर ही दवाई का छिड़काव करें।
- फसल रोग की शुरुआती पहचान पर
तुरंत कृषि वैज्ञानिक से संपर्क करें।
- जैविक और प्राकृतिक खेती के उपाय भी अपनाएं ताकि मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहे।
- किसान प्रशिक्षण शिविरों में नियमित भागीदारी करें।
ग्वार फसल में इस बार जीवाणु अंगमारी और काली डंडी रोग ने किसानों को चिंता
में डाल दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसान सही समय पर दवाई का
छिड़काव करें और
कृषि विभाग की सलाह पर अमल करें तो इस समस्या से काफी हद तक बचाव संभव है।
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