परीक्षाओं में जो विचलित ना हो वही विवेकी इंसान : कँवर साहेब
गांव रुपावास स्थित राधा स्वामी आश्रम में ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया गया
- कंवर साहेब ने कहा कि कोरोना महामारी का संकट बड़ा है। इससे मुकाबला समझदारी से किया जा सकता है
चोपटा। वक़्त परीक्षाएं लेता है। इन परीक्षाओं में जो विचलित ना हो वही विवेकी इंसान है। इसी विवेक के जागरण का काम करता है सन्तों का सत्संग। सत्संग हर बुराई को अच्छाई में तब्दील करता है। सत्संग के लिए आवश्यक नहीं है कि आप आश्रमो में ही आकर सत्संग करें। सत्संग तो चिन्तन और मनन का है और चिंतन कहीं भी बैठ कर हो सकता है। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कँवर साहेब महाराज ने रूपावास गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम से जारी ऑनलाइन सत्संग में प्रकट किए। कोरोना महामारी के चलते संगत को आश्रम में इकट्ठा नही होने दिया गया।हुजूर कँवर साहेब जी ने कहा कि कोरोना महामारी का संकट बड़ा है। इससे मुकाबला समझदारी से किया जा सकता है ना कि अड़ियल बनकर।उन्होंने कहा कि ये समय भी बीत जाएगा।परमात्मा की रहमत का कोई मोल नहीं है।यह समय भी परमात्मा की तरफ से कोई सीख ही है। महाराज ने कहा कि जो परहित नहीं करते वे इंसानी नहीं बल्कि राक्षसी यौनि के हैं।अगर कोई आपका बुरा करता है तो भी आप उसका अच्छा करो।अगर आपने भी बुरा कर दिया तो आपमें और उसमें क्या अंतर हुआ।जिसके संस्कार अच्छे हैं वो कभी किसी का बुरा नहीं करता।वो हमेशा दूसरे के कल्याण के लिए ही लगा रहता है।उसका पारितोषिक दूसरों की खुशी है।माता पिता ने यदि सन्तान को अच्छी शिक्षा दे दी तो समझो आपने बहुत कुछ कमा लिया।अगर सन्तान ही दिशाहीन हो गयी तो क्या लाभ आपके धन वैभव शोहरत का।संस्कार कभी व्यर्थ नहीं जाते।गुरु महाराज जी ने कहा कि सन्तों से कुछ मांगना नहीं सन्तों की तो शरणाई करो।सन्तों की शरण में तो माया और अभिमान को त्याग कर जाना चाहिए।निर्लेप होकर यदि आप सन्त मिलन के चलते हो तो आप का एक एक कदम ही यज्ञ के समान है।सन्तों के दर्शन से तो लाभ ही लाभ है क्योंकि सन्त किसी से कुछ लेते नहीं है वे तो एकमात्र दाता हैं। महाराज ने कहा कि चाह चाह में भी फ़र्क़ है।एक चाह दूसरे के भलाई की है और एक चाह स्वयं की स्वार्थ सिद्धि के लिए।जो इंसान अच्छा होता है उसकी तो बोली में भी रस होता है। आपका वचन आपके व्यक्तित्व की झलक देता है।सन्तों का हृदय माखन के समान होता है।
गुरु महाराज जी ने कहा कि हिंदुस्तान के संस्कार बहुत समृद्ध होते थे।यहां तो अतिथि को भी देवो का दर्जा दिया जाता था।समय अब भी वही है यदि हम अपनी जड़ों को ना भूले तो। महापुरुषों का एक वचन तो इंसान का जीवन संवार देता है।गुरु महाराज जी ने एक प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि एक मां ने अपने पुत्र को कहा कि अमुक जंगल में एक सन्त वास करते हैं उनसे जाकर एक प्रश्न पूछना कि हमारे अच्छे दिन कब आएंगे और मेरे घर में बहु कब आएगी।लड़का चल पड़ा।रास्ते में रात हुई।व्व एक घर में रुक गया।घर एक सेठानी का था।सेठानी ने पूछा कहाँ जाओगे।लड़के ने सारी बात बताई तो सेठानी ने कहा कि एक प्रश्न मेरा भी पूछना कि मेरी गूंगी लड़की कब बोलेगी और उसकी शादी कब होगी।लड़का अगले दिन फिर चल पड़ा।भूख लगी तो एक जमींदार के घर खाना मांगा।जमींदार ने खाना खिलाकर पूछा कि कहाँ जा रहे हो।लड़के ने बताया।जमींदार ने कहा कि मेरा भी एक सवाल पूछना कि कितनी ऋतु बीत गई लेकुन मेरे पेडों ओर फल कब आएगा।लड़का आगे बढ़ा।आगे एक साधु मिला।साधु ने भी लड़के को एक सवाल दिया कि मेरी साधना कब पूरी होगी।लड़का सन्त महात्मा के वास पहुंचा।सन्त ने कहा कि मैं एक ही दिन में तीन सवाल के जवाब बताता हूँ।तुम आज अकेले आये हो तो तीनों प्रश्न तुम ही पूछ लो।लड़का सोचने लगा कि सवाल मेरे चार हैं और ये केवल तीन सवाल पूछने की कह रहे हैं तो इसेमें मैं किसका सवाल छोड़ूँ।सेठानी का छोड़ूँ या जमींदार या साधु का।अंततः उसने अपना खुद का सवाल छोड़ दिया और बाकियों के सवाल पूछ कर चल पड़ा।वापसी में साधु मिला।साधु ने जवाब पूछा।लड़के ने कहा कि साधना पूरी हो जाएगी लेकिन एक बाधा है कि जो आपने जटाओं जो मणि छिपा रखी है वो निकाल दो।साधु ने अपनी जटाओं को खोल कर मणि लड़के को दे दी।साथ ही साथ साधु ने लड़के का धन्यवाद किया कि तुमने मेरा उपकार कर दिया।लड़का आगे बढ़ा तो राह में वही जमींदार मिला।जमींदार ने जवाब पूछा।लड़के ने कहा कि महात्मा ने कहा है कि फल आ जाएंगे लेकिन पेड़ो की जड़ में रुकावट है उसे खोदो।जड़ खोदी तो जड़ो में हीरे जवाहरात की टोकनी दबी थी।जमींदार ने लड़के से खुश होकर कहा तूने तो मेरा जीवन ही बना दिया उन टोकनियो को तू ले जा मैं तो मेहनत करने वाला इंसान हूँ।लड़का आगे बढ़ा तो सेठानी मिली।उसने भी जवाब पूछा।लड़के ने कहा कि आपके सवाल का जवाब महात्मा ने यह दिया है कि जब आपकी लड़की किसी लड़के को देखेगी उसी वक़्त उसकी आवाज आ जायेगी और उसी से उसकी शादी होगी।इतनी देर में लड़की आई और उस लड़के को देख कर बोलने लगी।सेठानी ने उसी वक़्त उस लड़के से लड़की की शादी कर दी।घर पहुंचा तो माँ ने जवाब पूछा।लड़के ने कहा कि मां ये सब उसी का जवाब है।
महाराज जी ने कहा कि जो अपने लिए नहीं दुसरो के लिए जीता है उसका परमात्मा निगाहबान है।परहित से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि जो अपने लिए नहीं जीते उनके लिए परमात्मा हर पल हाजिर नाजिर रहता है।सन्त सतगुरु का हर उपदेश दूसरे की भलाई के लिए होता है।सन्त सतगुरु भनक भी नही लगने देते और आपको मालामाल कर देते हैं जैसे उस महात्मा ने उस लड़के को कर दिया।हुजूर महाराज ने कहा कि जो जैसा करेगा वो वैसा ही भरेगा इसलिए सैदेव सत्कार्य करो। महाराज ने कहा कि अच्छे इंसान बनो भक्त स्वतः अच्छे बन जाओगे।घर परिवार में प्यार प्रेम रखो,पर्यावरण और जल का संरक्षण करो।वृक्षारोपण करो।
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