उत्तर- परिभाषा - संस्कृत साहित्य में रोति शब्द का प्रयोग लेखक द्वारा विषय के प्रतिपादन के ढंग, अपनी बात के कहने के तरीके या लेखन शैली के अर्थ में हुआ है।
रिति सम्प्रदाय के आचार्य वामन ने रीति की परिभाषा इस प्रकार की है- 'विशिष्ट पद रचना रीतिः। विशेषो गुणात्मा।' अर्थात् विशिष्ट पद रचना को रीति कहते हैं। यह वैशिष्ट्य गुणों पर आधारित होता है।
रीति का स्वरूप आचायों के उपर्युक्त विवेचन से कहा जा सकता है
1. विशिष्ट पद रचना को रीति कहते हैं,
2. विशिष्ट से तात्पर्य गुण-युक्त से है,
3. गुणों में प्रसाद और माधुर्य प्रमुख रूप से रीति के लिए अनिवार्य है। ओज पर आश्रित रीति को आचार्यों ने महत्त्व नहीं दिया है,
4. रोति काव्य सौन्दर्य और रस का उत्कर्षक उपादान है। गुण विशेष के आश्रय से रोप्ति अभिव्यंजना को सरस बनाती है। आचार्य वामन ने रीति को काव्य की आत्मा कहा है- 'रीतिः आत्मा काव्यस्य ।'
निष्कर्षतः डॉ. नगेन्द्र के शब्दों में रीति की परिभाषा और स्वरूप के विषय में कहा जा सकता है- 'रीति शब्द और अर्थ के आश्रित रचना चमत्कार का नाम है,
जो माधुर्य ओज अथवा प्रत्लाद गुण के द्वारा चित्त को द्रवित, दीप्त और परिव्याप्त करती हुई रस दशा तक पहुँचती है।'
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